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प्रत्येक जाति के लोग पुजारी बन सकते हैं..

          कुछ दिन पहले धीरेन्द्र शास्त्री 'बागेश्वर धाम' जी की अगुवाई में सनातन हिन्दू एकता पदयात्रा संपन्न हुई। उन्होंने बहुत ही सराहनीय कार्य किया। 

        यात्रा शुरू होने के एक दिन पहले उन्होंने कहा था कि वैदिक, वैष्णव परंपरा को मानने वाले प्रत्येक जाति के लोगों को मंदिरों का पुजारी होना चाहिए। जब सब हिन्दू हैं तो अधिकार भी समान होने चाहिए!! 

              इसी बात को मैं अपने घर, रिश्तेदारों, समाज को पिछले 10 साल से समझा रहा हूं। लेकिन उनको अभी तक बात समझ नहीं आई। 5 साल पहले, मेरी बहिन की शादी थी। तब मैंने घरवालों को कहा था कि मुझे शादी का पूजन-पाठ किसी गैर ब्राह्मण (जो जाति का ब्राह्मण नहीं हो) के द्वारा, या किसी छोटी समाज, या अपने रिश्तेदार, मान-भनेज से करवाना है। लेकिन उन्होंने जाति के ब्राह्मण द्वारा ही शादी का कार्यक्रम सम्पन्न करवाया। इसलिए मैं अपनी सगी बहन के तिलक, भांवर, फेरे, शादी आदि में घर में ही नहीं था। आपको विश्वास ना हो तो मेरे गांव में पूंछ सकते हो।

पहले मेरे रिश्तेदार, समाज के लोग ही मेरी सोच को गालियां देते थे। कहते थे कि ऐसा नहीं हो सकता है? अब भले ही वे लोग कहने लगे हैं कि, शास्त्री जी ने सही कहा है। अब मैं उनसे कहता हूं कि उस दिन मैंने भी तो यही बोला था! परंतु कहावत है ना कि 'घर की मुर्गी दाल बराबर'। अब मुझे समझ आया कि लोगों को ख्याति (फेमस) व्यक्ति के कहने से ही समझ आता है। शास्त्री जी ने तो 20 दिन पहले कहा है। मैं तो पिछले 10 साल से कह रहा हूं। हम प्रसिद्ध व्यक्ति नहीं हैं, तो क्या हुआ? सोच-विचार में बहुत आगे हैं।

          ये सोच मुझे तब मिली जब मैंने अपने बब्बा से पूंछा कि आप लोग छोटी समाज के लोगों से भेदभाव क्यों करते हो? उन्होंने कहा कि ये प्रथाएं पहले से चली आ रही है। फिर मैंने पूंछा कि इनको दूर कैसे किया जा सकता है? तब उन्होंने कहा कि अगर ब्राम्हण समाज इस मामले में आगें आएं, तो ये प्रथाएं बहुत जल्दी समाप्त हो सकती है। उस दिन से मेरा संघर्ष जारी है। और आज शास्त्री जी ने आगे आकर बहुत ही नेक काम किया है।







       अगर सचमुच में एकता आपका लक्ष्य है? तो "जात पात की करो विदाई हम सब हिन्दू भाई भाई" सिर्फ कहने से नहीं होगा?

        ऐसा तो हमारे गांव में भी होता है कि ऊंची और नीची जाति के लोग, गांव से बाहर कहीं मिलते हैं। तो साथ में उठते बैठते, खाते पीते हैं। लेकिन गांव में आने के बाद उनके बीच वैसे ही भेदभाव की खाई बन जाती है।

       आप लोगों ने सुना होगा कि जातिवाद, ऊंच-नीच का भेदभाव ब्राह्मणों ने बनाया है। इसके सही जबाब के लिए आपको जमीनी स्तर पर छोटी समाज के लोगों से जुड़ना पड़ेगा। भेदभाव से ग्रस्त लोगों की भावनाओं को समझना होगा। मेरा मानना है कि, पहले जो था? सो था। लेकिन अभी जो भी भेदभाव हो रहे हैं। अगर आप लोग वर्तमान में इसकी सचमुच विदाई करना चाहते हैं, तो संपूर्ण ब्राह्मण जाति को सच्चे मन से बढ़ चढ़ के आगे आना होगा। तभी विजन पूरा होगा। और अगर ब्राह्मण समाज आगे नहीं आएगा। तो जो सुना है कि जातिवाद को किसने बनाया है? यह आज के समय में भी सच हो जाएगा। इसके बाद इस बात को मैं भी मानूंगा। इसलिए विनय निवेदन है कि आप लोगों के सहयोग से यह बहुत आसानी से संभव है।




         पहले से बने बनाये रास्तों पर चलना उतना ही आसान होता है। जितना की मुश्किल उन रास्तों को बनाना होता है।

     लेकिन असली मजा तो तब है, जब लोग अपने बनाए रास्तों पर चले।




      2005 की बात है, जब मैं कक्षा 5 वीं में था। मेरे बब्बा जी ने कुल देवी मरही माता के यहां सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन किया। हमारे घर के हर शुभ कार्य के लिए हमारे कुल ब्राह्मण थे। उस समय उनकी उम्र ज्यादा होने के कारण उन्होंने अपने बेटे (जो अभी भी हमारे बीच हैं) को भेजा। पंडित जी के द्वारा कथा वाचन शुरू हुआ। तब मैं उस समय 10-11 साल का था। छोटा बच्चे की तरह पंडित जी के पीछे तरफ से जाकर देखने लगा कि वे क्या पढ़ रहे हैं? मैं पढ़ने में होशियार तो था ही, इसलिए पढ़ते बन जाता था। मैं ढूंढ रहा था कि पंडित जी किस लाइन में पढ़ रहे हैं? नहीं मिला, तो मैं इंतजार में था कि पंडित जी कब अगला पेज पलटाएंगे? फिर उधर से साथ में पढूंगा। इसके बाद 1 पेज, 2 पेज करते करते कई पेज पलट गये? लेकिन उसमें जो लिखा था, वो तो वे पढ़ ही नहीं रहे थे? इसके बाद ये बात मैंने पापा, कक्कू आदि को बताई कि किताब में तो कछु और लिखो है, पंडित जी से पढ़त नइ बनत। वे तो गलत पढ़ रहे हैं। मोसे पढ़त बन जात है, मैं पढ़ दूं? तो उन्होंने कहा कि नहीं! अपन नहीं पढ़ सकते। सिर्फ वे ही पढ़ सकते हैं। तो मैंने जिज्ञासा से पूछा कि ऐसा क्यों? तो उन्होंने कहा कि हम ब्राह्मण जाति के नहीं हैं। फिर मैंने पूंछा कि अगर मैं ब्राह्मण कुल में जन्म लेता तो पढ़ सकता था? तो उन्होंने कहा हां फिर पढ़ सकते थे। मैंने सोचा कि मुझसे तो किताब सही सही पढ़ते बन रही है? फिर भी? बाद में समझ आई कि पढ़ना जरूरी नहीं है, कुल में पैदा होना जरूरी है। और ये बात मेरे दिल में घर कर गई और जब समझदारी आई तो परिणाम आपके सामने है..

       मेरा प्रश्न है कि आजकल लोग जब प्राचीन समय की जाति के अनुसार काम ही नहीं करते हैं। लेकिन सिर्फ ब्राह्मण समाज अभी भी जाति के अनुसार काम करते हैं? और साथ ही साथ में अन्य जातियों के काम भी करते हैं। क्योंकि अभी भी पुजारी सिर्फ ब्राम्हण समाज के होते हैं। प्रश्न है कि उन्हें भी हमारी खेती किसानी, पशुपालन, व्यवसाय, नौकरी, आदि नहीं करना चाहिए? या जब वे हमारे काम कर सकते हैं? तो हम भी उनके काम, जैसे पुजारी बन सकते हैं?

         इन दो विचारों से मैंने पूजन पाठ गैर ब्राह्मण द्वारा सम्पन्न कराने का निर्णय लिया है।





            आओ सुनाऊं प्यार के कई सवाल ..?

        मेरी अपने समाज में बिना ब्राह्मण के अरेंज शादी हो नहीं सकती है। और समाज की लड़की को पटा कर मैं कोशिश भर कोर्ट मैरिज करूंगा नहीं। क्योंकि उसके साथ तो अरेंज शादी की प्रथाओं जैसे हो सकती है।

      ऊंची जाति की लड़कियां अपनी बराबर की जातियों की बुराइयां सहन नहीं कर पाती।

      OBC जाति की लड़कियों को मेरा ऊंची जाति के खिलाफ संघर्ष अच्छा लगता है। लेकिन छोटी जाति को ऊपर उठाने की लड़ाई पसंद नहीं आती। उन्हें नीच जातियों से घृणा है।

        अन्य धर्म की लड़की मुझे चाहिए नहीं। अब बचा ही क्या? SC और ST जाति। 

           मैं जातियों के प्रति अपने मां बाप की तरह दोहरा व्यवहार नहीं करता। उनकी मानसिकता है कि ऊंची जाति से शादी करेगा, तो उन्हें मंजूर है। नहीं तो तेरा मेरा रिश्ता खत्म। और मैं ठहरा न्यूट्रल.. जातिवाद ही नहीं मानता। किसी जाति के प्रति द्वेष नहीं। मेरे लिए सब बराबर हैं। 

      मां बाप के अनुरूप अगर मैं ऊंची जाति की लड़की से शादी कर लूं। तो मां बाप खुश हो जाएंगे। लेकिन लड़की की खुशी के लिए मुझे ऊंची जातियों के खिलाफ संघर्ष त्यागना पड़ेगा। इसके बाद मैं हमेशा दुखी रहूंगा। इसलिए ये तो मुझसे होगा नहीं।

        अगर मां बाप के खिलाफ जाकर किसी छोटी समाज से शादी करता हूं, तो फिर मैं खुश। लेकिन मां बाप दुखी।

       अच्छी जिद के लिए बहिन की शादी छोड़ सकता हूं। तो ये क्या चीज है..?

         शादी अकेले हो सकती तो संभव था। खैर अभी प्रथा समाप्त नहीं हुई तो 25 साल बाद अपनी अगली पीढ़ी का इंतजार करूंगा। लेकिन शादी में जाति का ब्राह्मण नहीं आएगा।

       चेतावनी - काल्पनिक है, सच्चाई मात्र संयोग है।



         आपके घर में कोई कार्यक्रम है और आपने मुझे निमंत्रित किया है। तो मैं आपके कार्यक्रम में नहीं आऊंगा। इसलिए कृपया कर आप बुरा मत मानना। क्योंकि मैं किसी भी ऐसे निमंत्रण में नहीं जाता। जिस कार्यक्रम की पूजन पाठ, विधि विधान जाति के ब्राह्मण द्वारा सम्पन्न कराया जाता है। क्योंकि ब्राह्मण के कारण ही मैं अपनी सगी बहिन की शादी में नहीं था। इससे बढ़ कर कौन सा रिश्ता हो सकता है।

        लेकिन गैर ब्राह्मण वाले कार्यक्रम जिसमें ब्राह्मण की जरूरत नहीं होती है। जैसे शादी के मंडप, हल्दी आदि। इसलिए इन अवसरों पर जरूर आऊंगा।

सगी बहन से बढ़कर कोई रिश्ता है क्या?



अगर आपका सचमुच लक्ष्य है, कि हम सब एक हो जाएं..

      आप लोग बताइए कभी आपने किसी ऊंची जाति के लोगों को धर्मांतरण करते सुना है? कभी नहीं सुना होगा? उन्हें कौन कोई जातिवाद के कारण अपमानित करता है?

        ज्यादातर धर्मांतरण छोटी जाति, भेदभाव से ग्रसित लोग करते हैं! आप लोगों ने कभी सोचा, कि वे ऐसा क्यों करते हैं? आप कभी ऐसे लोगों से जुड़कर उनके मन की बात जानने की कोशिश करना, तब समझ में आएगा? मैं तो ऐसे लोगों के बीच ही रहता हूं, इसलिए मुझे पता है। बचपन में मैंने सुना था, कि मेरे पास के गांव में मेहतर परिवार था, जिन्हें गांव के लोग बहुत अपमानित, जाति सूचक, अछूत, नीच, अरन तुरंन करके बोलते थे। तो उन्होंने मजबूरी में सिख धर्म अपना लिया। अब बताइए दोष किसका है? और लोग धर्म परिवर्तन करने वालों को दोषी ठहराते हैं।

         मैं छोटी जाति से कहता हूं कि सिर्फ आप अपना स्वाभिमान बनाए रखिए। इसको मत गिरने दीजिए। अपमान का सही उपाय धर्मांतरण नहीं है। आप लोगों को बुरे, घमंडी, मूर्ख लोग अपमानित करते हैं। भगवान नहीं कर रहे हैं। इसलिए प्लीज भगवान को दोषी मानकर उन्हें मत छोड़िए। आप उनको छोड़िए, जो आपके सच में दोषी हैं? जिस जाति के लोग आपसे दुर्व्यवहार करें, उस जाति के लोगों से अपने घर के कोई भी काम ना कराएं। जब आप उनसे कार्य नहीं कराएंगे, तो उन्हें अपने आप समझ आएगा।

             मैंने छोटी समाज को रास्ता बनाने के लिए ही पहल की थी कि, मैं अपने घर के प्रत्येक कार्यक्रमों की पूजन-पाठ गैर ब्राह्मण द्वारा कराऊंगा। मैं उनसे कहता हूं कि आप खुद पुजारी बनिए।



         पहले के समय में एक ही जाति (ब्राह्मण) को ध्यान में रखकर श्लोक, ग्रंथ लिखे गए थे। कर्मकांड पूजन पाठ के श्लोकों में अन्य किसी जाति का वर्णन नहीं आता। या हो सकता है कि पहले के समय में जातिवाद ही नहीं रहा हो? इसलिए सभी हिन्दूओं को ब्राह्मण लिखा गया हो। लेकिन बाद में जातियों के वर्गीकरण से बहुत कुछ बदल गया। और आपस में खाइयां बनती गई। पहले जो भी रहा हो? लेकिन अब हमें इन खाइयों को भरने की जरूरत है। 

       हमारे शुभ कार्यक्रमों के मंत्रों में सिर्फ ब्राम्हण जाति का ही वर्णन है। इनमें ब्राह्मण जाति को ही श्रेष्ठ बताया गया है। लेकिन आज सनातन धर्म में केवल ब्राह्मण जाति ही नहीं है? इसलिए अन्य जातियों में द्वेष उत्पन्न होता है। उन्हें लगता है कि हम इनसे अलग हैं। इसलिए अब हमें पहले की हुई भूलों को सुधारना होगा। और इन मंत्रों, ग्रंथों में ब्राह्मण शब्द के स्थान पर हिन्दू/सनातनी शब्द लिखना होगा। या फिर आज के समय, हिन्दू धर्म की सभी जातियों को मिलाकर सिर्फ एक जाति ब्राह्मण बनाना होगा। तभी इन ग्रंथों, श्लोकों, मंत्रों में एक रूपता दिखाई देगी। इनमें से किसी एक बात को अमल में अवश्य लाना होगा। तभी आपसी द्वेष खत्म होगा। और फिर से सभी एक समान हो सकेंगे। नहीं तो जातियों के प्रति आपस में बनी खाइयां नहीं मिट पाएंगी।

काश, ये जातिवाद ना होता!

तो एक भाई को अपनी बहन की शादी से दूर रहना नहीं पड़ता।

2)काश, मेरी शादी के कारण मेरे परिवार को रोना नहीं पड़ता। जातिवाद ने बहुत सारी खुशियां छीनी हैं।

         आज मैं जातिवाद संघर्ष में तो जीत गया हूं, क्योंकि परिवार को सुधार लिया है। लेकिन मेरा परिवार रो रहा है। क्योंकि उनकी खुशियां जातिवाद के कारण ही छिनी हुई हैं। रास्ता बन गया है, तो लोगों चलना स्वाभाविक है। लेकिन मैंने जो दुःख, मां बाप की आंखों में आंसू, ताने, संघर्ष किया है। वो मैं ही जानता हूं। इसलिए मेरा बस चले तो मैं अपने बनाए रास्ते पर किसी को चलने नहीं दूं।

        लेकिन अभी तक मैं और मेरा परिवार रोया है। ताकि आने वाली पीढ़ी के किसी परिवार को जातिवाद के कारण रोना ना पड़े।



        लोग मुझसे पूंछते हैं कि तुम्हारा वर्ण, जाति क्या है?

1) शूद्र- पाखंडियों और धर्म के ठेकेदारों के अनुसार किसान मतलब शूद्र।

2) क्षत्रिय- मौर्य साम्राज्य जो देश का सबसे बड़ा साम्राज्य था। चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक महान, भारत का राष्ट्रीय चिह्न- अशोक चक्र। मतलब शासन और प्रजा की रक्षा की इसलिए क्षत्रिय। मेरे नाम में 'सिंह' का मतलब दर्शाता है कि हमारे पूर्वज शासक थे।

3) भगवान- गौतम बुद्ध हमारे 'शाक्य' कुल में ही जन्में थे। और हम मूल निवासी हैं।

4) महात्मा ज्योतिराव फुले (माली) अगर आज कोई भी धर्म और जाति की महिलाएं नौकरी या बराबरी पर हैं। तो इनकी क्रांति ज्योति के कारण ही हैं। इन्होंने भेदभाव ना करते हुए ब्राह्मण महिलाओं को भी शिक्षित किया, आजादी दी, विधवा को गंजी करने की कुप्रथा से निकाला, विधवा पुनर्विवाह। उनके समय में सभी धर्म और जातियों की महिलाएं, शूद्र के समान ही गुलाम थीं।

विभिन्न प्रदेशों में अलग अलग नाम कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, कोइरी, माली, सैनी, गहलोत, कांवरे, कछवाहा, मुराव, भुजबल, वानखेड़े, रेडी, महतो।

खैर, मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मैं ब्राह्मण वादियों के अनुसार शूद्र हूं। या अपने इतिहास के अनुसार क्षत्रिय। मैं न्यूट्रल हूं। लेकिन हां इतिहास मिटाने वाले मिट गए। क्योंकि हमें अपना इतिहास पता है। और एक घड़ी हम अपनी अगली पीढ़ी को भगवान के बारे मे नहीं बताएंगे। लेकिन उन्हें जरूर बताएंगे जिन्होंने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। हम उन्हें कभी नहीं मिटने देंगे। वफादारी निभाएंगे। क्योंकि उनके कारण ही आज हम है।

      जैसे भगवान गौतम बुद्ध, मौर्य साम्राज्य, सम्राट चन्द्रगुप्त और प्रियदर्शी सम्राट अशोक महान, कबीर दास, महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले, बाबा साहेब अम्बेडकर आदि।

   हमारे पूर्वजों ने लोगों की भलाई के लिए हमेशा काम किया। मैं उनसे ही प्रेरणा ली है। सम्राट अशोक ने शिक्षा के लिए नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय बनवाए। जहां विदेश से लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे। उन्होंने बौद्ध धर्म अपना कर भी, अपनी प्रजा पर दबाव नहीं बनाया कि वे भी बौद्ध धर्म अपनाए। उन्होंने प्रजा को अपने धर्म की आजादी थी। ऐसे सम्राट हमारे पूर्वज है। जिनसे हम सहिष्णुता सीखे हैं। औरंगजेब और मुगलों की तरह नहीं कि असहिष्णुता फैलाएं और तलवार की नोंक पर प्रजा को दुखी करें। यही महापुरुष इतिहास में अमर हो जाते हैं।

     जैसे आज लोग 2329 साल बाद भी सम्राट अशोक की नीतियों को अपनाते हैं। और उनके आदर्शों पर चलते हैं। उन्हें पूजते हैं। उनकी निशानियों को राष्ट्रीय धरोहर बनाया जाता है। और जिन्होंने अपनी ही प्रजा को परेशान किया है। उन्हें इतिहास के काले पन्ने में लिखा जाता है। और एक दिन ये पन्ने फाड़ दिए जाते हैं। आज सिर्फ 400 साल में ही औरंगजेब के साथ यही हो रहा है। इसलिए ताकत के नशे में अभी ऐसा मत करो कि इतिहास आपको कभी माफ ही नहीं कर सके। और लोग आपका इतिहास ही मिटा दें। ये आज के समय में इतिहास से सबक लेना ही है। Toleration, catholicity

ये तो वैसा ही हुआ कि एक घर के मालिक को अपने ही घर में दफन होने के लिए 4 गज जमीन तक नहीं मिली।



जय जय जोती, जय जय क्रांति! क्रांति ज्योतिबा जिंदाबाद।


     अपने परिवार को अंतिम संस्कार का इच्छानुसार आदेश-

       मेरे मरने के बाद, मेरे पार्थिव शरीर और चिता पर किसी भी ब्राम्हणवादी मानसिकता रखने वालों की परछाई तक नहीं पड़नी चाहिए। छूना तो बहुत दूर की बात है। अगर उनकी छाया भी पड़ी तो मैं अछूत हो जाऊंगा। क्योंकि जब ये लोग दूसरों को अछूत मान सकते हैं, तो दूसरे लोग भी इन्हें अछूत मान सकते हैं। ये इनके लिए अलग बात नहीं है। और इनको इन्हीं की भाषा में समझाने से समझ आएगा। तब जाकर इन्हें वैसा ही महसूस होगा, जैसा अभी तक ये लोग दूसरों के साथ करते आ रहे हैं। जीते जी मैं पूरी जिंदगी ब्राह्मणवाद से दूर रहा।

    अगर अपनी समाज या छोटी जाति में से कोई विधिवत पूजन करने के लिए तैयार ना हो। तो फिर बिना कर्मकांड के ही कर देना। वैसे किसी छोटी जाति जैसे चमार, बसोर, भंगी, डोरिया, गौड़ से कार्यक्रम कराने में मेरी आत्मा को शांति मिलेगी। क्योंकि मैंने पूरी जिंदगी इनके लिए ही तो संघर्ष किया है।

        लेकिन कृपया कर ब्राह्मणवादियों की परछाइयों से भी दूर रखना। (सिर्फ शासकीय कर्मचारी को छोड़कर) 

    जीते जी मैं ब्राम्हणवादियों को अछूत मानता रहा हूं। लेकिन मरने के बाद मैं तो रहूंगा नहीं इसलिए मरने के बाद आप लोग मुझे अछूत कर दो तो मैं कौन सा देख रहा हूं। लेकिन जिंदा में तो मैं पवित्र रहा हूं।


भारत में संतोष फिल्म को इसलिए बैन कर दिया गया क्योंकि उसमें जातिवाद, लिंग, महिला पुरुष, ऊंच नीच के भेदभाव को दिखाया गया है। इसलिए सेंसर बोर्ड का कहना है कि इससे समाज में असामान्यताएं फैलेगी। लेकिन इन सब की जो जड़ है मनुस्मृति, उस पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते हैं। क्योंकि कृपा इसी किताब से आ रही है।


इतिहास गवाह है कि जिन्होंने मनुस्मृति का विरोध या जलाया है। उन सब को धर्म के ठेकेदारों, पाखंडियों, दोगले लोगों ने सनातनी विरोधी कहा।


लेकिन जब ऐसे लोगों को अपने स्वार्थ की लिए बात आती है तो, बाबा साहेब की शरण में चले जाते हैं। अपने हक, बराबरी, पढ़ाई आदि के लिए।


महापुरुष जैसे कबीर दास, रविदास, पेरियार रामास्वामी, ज्योतिराव फुले, बाबा साहेब अम्बेडकर, कुरुंदकर, आदि।

दोगले और धर्म के ठेकेदारों, पाखंडी लोगों को करारा जवाब जो अपने स्वार्थ के लिए बाबा साहेब की बनाई व्यवस्था पर गिड़गिड़ाने लगते हैं। फिर क्यों नहीं गिड़गिड़ाते मनुस्मृति पर। ये दोगलापन क्यों करते हो। जिन्हें सनातनी विरोधी बताते हो, फिर अपने स्वार्थ के लिए भगवान भी मानते हो, भाई आप लोग ऐसा क्यों करते हैं??

अच्छा हुआ कि मैंने गुलामगीरी पढ़ी है। अगर मनुस्मृति पढ़ी होती तो मैं भी दोगलापन करता।

 मनुस्मृति विवादित पहलू, हिन्दू कानून 

मनुष्य की वर्ण व्यवस्था को ईश्वर द्वारा रचित बताया गया।

अंतर्जातीय विवाह नहीं कर सकते।

महिलाओं की कामुकता पर नियंत्रण।

शूद्रों का स्थान। और सभी महिलाएं शूद्र।

लड़की की आजादी - अध्याय 5, श्लोक नंबर 148

ब्राह्मणों का सम्मान - अध्याय 11, श्लोक नंबर 135

अगर 10 वर्ष का ब्राह्मण वर्ण का पुरुष है तो उसका सम्मान करना चाहिए। भले ही 90 साल के क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्ण का पुरुष सामने हो, लेकिन उम्र के लिहाज से सम्मान नहीं करना चाहिए। सिर्फ वर्ण के अनुसार सम्मान करना चाहिए।

शूद्रों को शिक्षा नहीं - अध्याय 4, श्लोक नंबर 78 - 81

जन्म से ब्राह्मण राजा को सलाह दे सकता है, लेकिन एक विद्वान शूद्र भी सलाह नहीं दे सकता है। अध्याय 8, श्लोक नंबर 20

शूद्र वर्ण, उच्च वर्ग को अपमानित नहीं करेगा। उनका नाम सम्मान से ले। और ब्राह्मण को धर्म ना सिखाएं। श्लोक नंबर 270-271



कबीर दास (1398), रविदास (1388), छत्रपति शाहूजी महाराज (1682), गुरुनानक (1469), ज्योतिराव फुले (1827), सावित्रीबाई फुले (1831), पेरियार (1879), 

इन्होंने ब्राह्मणवाद, अंधविश्वास, पाखंड, समाज में फैली कुरीतियां, सामाजिक समरसता, भाईचारे के लिए काम किया है। और ये सभी तुलसीदास (1511) से पहले के समाज सुधारक थे। इससे स्पष्ट पता चलता है कि इन संतों ने ब्राह्मणवाद, जातिवाद, मनुवाद खत्म करने की कोशिश की

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