चेतावनी -: यह डायरी मेरी अपनी सोच, विचार और खुद की जी हुई ज़िन्दगी के कुछ अंश मात्र हैं। उसी लाइफ से जुड़े अनुभवों को पिरोया गया है। और स्वयं लिखी गई है। इसमें किसी धर्म, जाति, समुदाय, संस्कृति, मर्यादा, श्रृद्धा भक्ति, विचार, सोच, मान्यताओं आदि को ठेस पहुंचाने का कोई मकसद नहीं है। सब की अपनी अपनी सोच, विचार, चिंतन है जिसका मैं सम्मान करता हूं। मैं दुनिया के सामने खुली किताब हूं। इस डायरी को 18+ से अधिक उम्र के व्यस्क आदरणीय ही पढ़े। बच्चों (18-) को पढ़ना सख्त मना है। क्योंकि कहीं कहीं व्यस्क (adults) शब्दों का प्रयोग किया गया है। पाठकों से अनुरोध है कि वो सभी डायरी को सकारात्मक और आनंद की दृष्टि से पढ़े। और डायरी कैसी लगी आपको, और कहां मैं गलत हूं। इस बारे में अपनी अपनी प्रतिक्रियाएं जरूर दें। यह अहम हिस्सा होता है। और don't mind लेकिन मेरी हैण्ड राइटिंग बहुत बेकार है। इसमें मेरी मातृभाषा बुंदेली और हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
आदरणीय,
हर इंसान में कुछ बुराइयां होती हैं तो कुछ अच्छाइयां भी
ठीक इसी प्रकार धर्म, जाति, समुदाय, संस्कृति, परंपराओं में अच्छाइयां भी है।
धर्म का ज्ञान मुझे नहीं है।
लगाव, सभी धर्म में अच्छाइयां हैं उन्हें भी शामिल करें।
जो बुराइयां हैं भी तो एक बार बताएं। इसके बाद उसमें अपने विचार व्यक्त करें। उन्हें कैसे दूर करना है।
किसी भी धर्म की कुछ भी बुराईयों के कारण उसमें जो अच्छाइयां भी है जो हम भूल जाते हैं।
मैं किसी धर्म, जाति को नहीं मानता हूं। या ये कहें कि सभी धर्म, जाति को मानता हूं। इसका मतलब आप ही समझ जाएं.......
मैं किसी भी धर्म के देवी-देवताओं को नहीं मानता हूं। लेकिन जो भी है उन कहानियों में किरदार निभाने वालों में कुछ भी अच्छाइयां हैं तो वो ही हमारे काम की हैं। विचार की कीमत रखें क्योंकि किरदार तो कोई (मैं, तुम या हम में से कोई भी) भी निभा सकता है। लेकिन जो अवधारणा (विचार) लिखी गई है। वही तो वह किरदार बोलेगा जो भूमिका में है।
या इसे यूं समझिए कि रामायण, महाभारत, में राम की जगह कोई भी नाम दिया होता तो लेखक, उससे भी वही बोलवाता जो उसने उस किरदार के लिए लिखा है।
विचारणीय बात है कि लेखक अपनी, सोच, नजरिया या आदर्श उस किरदार के माध्यम से पहुंचाना चाहते हैं तो उस अच्छे विचार को ध्यान रखो ना कि किरदारों को। और कुछ बुराइयां तो रहती है तो उन्हें नजर अंदाज कर दो।
एक और साधारण से उदाहरण से समझिए
किसी फिल्म में अमिताभ बच्चन, मिथुन चक्रवर्ती, आमिर खान आदि किरदार निभाते हैं जो फिल्म की कहानी होती है उसी अनुसार किरदार अपनी अपनी भूमिकाएं निभाते हैं। जैसे 'शोले' में अमिताभ बच्चन की जगह मिथुन चक्रवर्ती को लिया जाता तो कहानी तो वही रहती।
मिथुन किसी फिल्म में हीरो की भूमिका निभाता है तो कभी किसी फिल्म में विलेन की। तो हम मिथुन को जज नहीं करते। बल्कि उसके किरदार पर विचार करते हैं। जो उसके किरदार में संदेश छुपा था। और सोचते हैं यह तो फिल्म है। मिथुन थोड़ी है ऐसा।
तो ठीक इसी प्रकार मैं सभी किरदारों की अच्छी आदर्श बातें हैं वो जरूर लेता हूं।
ठीक वैसे ही जैसे कबीर, गौतम, सुभाष, अब्दुल कलाम, भीमराव, ज्योतिबा, बल्लभ भाई, विवेकानंद, ईसा, अल्लाह, राम, इत्यादि।
अंतर इतना है कि कुछ हमारे लिए आदर्श बने अच्छे।
लेकिन कुछ हमारे 18-19 सदी के महापुरुष भी तो इन्हीं मनगढ़ंत कहानी के विचारों को मानकर ही बड़े हुए। और इनमें अपना विवेक, चिंतन, एनालिसिस से हमारे बीच आदर्श बन कर आज भी जीवित हैं।
और जिनकी इतिहास में जानकारी, अवशेष, उनके होने के प्रमाण मिले हैं तो उन्हें उनके नाम से बिल्कुल आदर्श मानिए। क्योंकि वो अस्तित्व में थे उन्होंने किरदार नहीं निभाया। उन्होंने यह किरदार खुद जिया है।
दो फिल्मों की तरह किसी के जीवन पर बनी फिल्म जैसे महेंद्र सिंह धोनी फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत ने धोनी का किरदार निभाया तो लोग धोनी को आदर्श मानते हैं ना कि सुशांत को क्रिकेटर के तौर पर। ऐसे ही सचिन अ बिलियन ड्रीम फिल्म में सचिन ने अपना किरदार खुद निभाया है तो उसमें बिल्कुल उसे ही आदर्श मान सकते हैं। क्योंकि उसने वह किरदार असल जिंदगी में जिया है।
गौतम बुद्ध, ईसा, महावीर, कबीर, गुरुनानक, सुभाषचन्द्र, भीमराव, ए. पी.जे.कलाम, न्यूटन, आइन्सटाइन, तुलसीदास और भी........
✍️...योग्विजय सिंह "योगी'
अबथोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि 'महेन्द्र सिंह धोनी द अनटोल्ड स्टोरी' फिल्म की जगह किसी लेखक ने मनगढ़ंत कहानी बिल्कुल इसी प्रकार लिखी होती और किरदार का नाम धोनी की जगह 'कुशवाहा' कर देता।
और सुशांत ही किरदार निभाता। तब भी आप 'कुशवाहा' (जैसे धोनी) उसकी मेहनत, कैसे उसने टीम में जगह बनाई, कैसे विश्व कप जिताया।
जो भी इस मनगढ़ंत कहानी को पढ़ता, देखता, सुनता तो वो भी वैसा ही बनना चाहता। और उस मेहनत को आदर्श मानता और वैसी ही मेहनत करता उसके जैसा बनने के लिए।
ना कि जिस नाम को लेखक ने रखा है उस नाम को आदर्श मानेगा, और ना ही उसे आदर्श मानेगा जिसने उस नाम का किरदार निभाया है।
ठीक आप भी आदर्शो को माने ना कि किरदार के नामों को, और किरदार निभाने वालों को।
धोनी की कहानी/किरदार में भी कुछ बुराइयां हैं जैसे वह पढ़ने में कमजोर था। तो अब जिसे बुराई वाला पहलू देखना है तो देखो। जबकि उसका दूसरा पहलू भी है।
तो अच्छा यही है कि धर्म से जुड़ी बातों को मुद्दा ना बनाएं। या फिर अपने स्वयं के विचार व्यक्त करें।
अंधविश्वास, पाखंड, रीति-रिवाज, भूत-प्रेत आदि में
और संविधानिक अधिकारों के बारे में जागरूक करने में प्रयासरत रहे। जिससे राष्ट्र कल्याण के साथ साथ मानवता का भी विकास हो।
0 Comments