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स्वाभिमान और मानसिकता

            हमारे समाज के पूर्वजों ने ब्राम्हणों से बहुत संघर्ष किया है। और उन्होंने समाज में बहुत कुछ बदलाव भी किए हैं। एवं इनसे निपटने के लिए बहुत से रास्ते, उपाय भी निकाले हैं। 

            जैसे ब्राह्मणों से तंग आकर हमारी समाज में बौद्ध धर्म के अनुसार शादियां करने की शुरुआत हुई। मतलब कुछ स्वाभिमानी लोगों ने ब्राम्हणों से छुटकारा पाने के लिए शादियों जैसे कार्यक्रम को बौद्ध धर्म के अनुसार करने लग गए। और आज ये बहुत प्रचलित भी है। क्योंकि इसमें अपने ही जाति के लोगों द्वारा पूजन पाठ, विधि विधान किया जाता है। किसी जाति के ब्राह्मण से छुटकारा पाने के लिए सही भी है। इसलिए आज ये हमारी समाज में बहुत ज्यादा प्रचलित है। और इसका प्रचलित होने का दूसरा कारण भी है कि, भगवान गौतम बुद्ध, हमारी समाज शाक्य जाति में पैदा हुए थे। भगवान गौतम बुद्ध तो मेरे आदर्श हैं।‌ उनका बोध ज्ञान बहुत उपयोगी है। इसलिए हमारे समाज के लोग भगवान बुद्ध को बहुत मानते हैं। लेकिन जो लोग ब्राह्मणों से छुटकारा पाने के लिए बौद्ध धर्म से शादियां करते हैं। ये लोग हिन्दू धर्म को ही मानते हैं, सिर्फ शादियों आदि के पूजन पाठ के कार्यक्रम बौद्ध धर्म के अनुसार करते हैं। ताकि ब्राह्मणवाद खत्म हो सके। हमारी समाज के लोग बहुतायत में कबीर साहेब को मानते हैं। संत कबीर की समाजसेवी, पाखंड, आदि के लिए जागरुकता का सराहनीय कार्य किया गया। इसलिए कुछ लोग कबीर शालाओं में जुड़े कबीर पंथ को मानने वाले पुजारियों द्वारा शादियां संपन्न कराते हैं।

          मुझे भी लोगों ने बहुत मनाया कि तुम बौद्ध धर्म के अनुसार शादी कर लो, इसके अनुसार शादी आसानी से हो जाएगी। क्योंकि बौद्ध धर्म से शादी करने के लिए हमारी समाज के लोग तैयार हैं। लेकिन मैंने उनको साफ मना कर दिया। क्योंकि मुझे हिन्दू धर्म के अनुसार ही शादी करना है, सिर्फ ऊंच नीच, ब्राह्मण वाद की मानसिकता को खत्म करना है। मतलब मुझे जाति के ब्राह्मण के स्थान पर अपने समाज या छोटी जाति के लोगों को पंडित या पुजारी बनाना है। और इनसे ही शादी की संपूर्ण पूजन पाठ, विधि कर्मकांड (गैर ब्राह्मण द्वारा) सम्पन्न करवाना है।

           अब मेरी शादी को ही देख लो? बिना जाति के ब्राह्मण से शादी करने के लिए हमारी समाज से कोई तैयार नहीं हो पा रहा है। हमारी समाज के लोग मेरे लिए बहुत रिश्ते लेकर आते हैं। लेकिन मेरी मुख्य शर्त (गैर ब्राह्मण द्वारा शादी की संपूर्ण पूजन पाठ करवाना) सुनने के बाद कहते हैं कि जाति के ब्राह्मण बिना शादी नहीं हो सकती है। ऐसी शादियां अपनी समाज में अभी नहीं होती हैं। इसलिए हमें रिश्ता नहीं करना है। लेकिन कुछ लोग ये जरूर कह कर जाते हैं कि गैर ब्राह्मण से शादियां होने लगे तो बहुत अच्छा हो जाएगा। तुम बहुत बहादुरी का काम कर रहे हो। लेकिन लोग क्या कहेंगे, हमारे रिश्तेदार नहीं मानेंगे आदि कारण बताकर मना कर जाते हैं। और कहते हैं जब बदलाव हो जाएगा तब मानेंगे। 

          किसी की पहल करने की तो हिम्मत नहीं होती है। लेकिन मैंने बदलाव की शुरुआत की है, फिर भी हमारी समाज वाले ही इस बदलाव में साथ नहीं दे रहे हैं? इसलिए बदलाव कैसे संभव है। क्योंकि शादी अकेले तो हो नहीं सकती हैं? इस बदलाव में किसी एक परिवार का साथ तो चाहिए ही होगा, तभी संभव है? अब बताइए अपनी समाज के लोग ही ब्राह्मणों का बहिष्कार नहीं कर पा रहें? तो सोचिए, इससे ज्यादा मैं और क्या कहूं? इससे पता चलता है, कि हमारी समाज को गुलामी ही पसंद है। क्योंकि मैं गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजाद करना चाहता हूं। लेकिन ये लोग आजाद होना ही नहीं चाहते?

      एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं अपने इस समाज के लिए ये नहीं कर रहा हूं, मैं तो सिर्फ अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कर रहा हूं। कि वे लोग स्वाभिमान से जी सकें। लेकिन ये अलग बात है कि इससे अप्रत्यक्ष रूप से समाज की भी उन्नति छुपी है। जो समाज आज के समय में मेरा साथ तक नहीं दे पा रही है, तो सोचो कि हमारे पूर्वजों की पहले के समय में ब्राह्मणों के द्वारा किए गए अत्याचारों की क्या स्थिति रही होगी? उनके इस भयावय डर से हमारी समाज आज तक निकल नहीं पाई है।

      इसलिए ब्राह्मणों को पता है कि ये लोग हमेशा हमारे गुलाम बने रहेंगे। और साथ में पूजन में हमारे मंत्रों का उच्चारण करेंगे क्योंकि मंत्रों, श्लोकों में सिर्फ एक जाति ही, ब्राह्मण शब्द का उपयोग किया गया है। इसलिए वहां भी सभी जातियों के लोग ब्राह्मण ब्राह्मण का जप करेंगे। इसलिए इनकी हर पीढ़ियों के लोग हमारी ही जयकार करेंगे। 

       मेरे पिछले 8-9 सालों से रिश्ते आ रहे हैं। क्योंकि अभी तक रिश्ता पक्का नहीं हुआ है। इसलिए मेरे बराबर शायद ही किसी के इतने रिश्ते आएं हों। क्योंकि ज्यादातर 2-3 सालों में रिश्ते पक्के हो जाते हैं।

          अभी कुछ दिन पहले भाई की पक्यात में, आए हुए रिश्तेदार ब्राह्मण वाद पर बतखाव कर रहे थे। कि पहले अपने पूर्वज ब्राह्मणों के मूड़ धर के पांव पड़त ते, पांय लागू करत ते, अगर खाना खाते समय आ गये तो खात में से उठ कर पहले उनकी सेवा करते थे, कुर्सी पे बैठाते थे और खुद जमीन पर बैठते थे। वे अपन से खात की थाली धुलवात ते। लेकिन आजकल हम उनकी बराबरी से बैठते हैं, बराबरी से खाना खाते हैं। घंटा पांय लागू नहीं करते। अब हम उनके दब्बू नहीं रहे आदि इस प्रकार की बातचीत कर रहे थे। आपस में एक दूसरे के गांवों को दोष दे रहे थे। कि इनके गांव के लोग बहुत गुलाम थे, उनके गांव के बहुत गुलाम थे। उनके बीच ऐसा बतखाव चल रहा था। और जब एक साथ लोग जुड़ते हैं तो इस प्रकार की चर्चाएं तो आम बात है। इसलिए अक्सर सुनने को मिल ही जाती हैं। उनकी ये बातें मैं भी सुन रहा था। इसलिए मुझसे रहा नहीं गया। मैंने कहा कि जब ब्राह्मणों ने आप लोगों पर या अपने पूर्वजों पर इतने ज्यादा अत्याचार किए हैं? तो फिर अपनी पूजन पाठ में ब्राह्मणों को क्यों बुलाते हो?? क्यों उनका नाम लेकर जप तप पूजन करते हो? नहीं करो, तब तो मैं जानू? कि आप लोग गुलाम नहीं हो? आप लोग बराबरी पर आ गये हो?

           फिर उन्होंने कहा कि सतना जिले तरफ तो शादियां बिना जाति के ब्राह्मणों द्वारा होती हैं। आसपास के कई क्षेत्रों में अपनी समाज के लोग बौद्ध धर्म से शादियां करते हैं। इसप्रकार की शादियों में अपनी समाज के लोग ही पूजा पाठ कराते हैं। और भी उदाहरण दिये जैसे रामपाल, रमैणी, सतसाहेब या कबीर शालाओं में अपने गुरु महाराज आदि के द्वारा शादियां की जाती है। इनमें जाति के ब्राह्मणों द्वारा शादियां नहीं की जाती हैं। 

         फिर मैंने इसके जबाब में कहा कि आप लोग हिन्दू धर्म के होकर, किसी दूसरे धर्म, पंथ या रीति को अपना कर, शादियां करते हैं? तो क्या आप इसको अपनी बहादुरी समझते हैं? आपके ऐसा करने से आपकी आने वाली पीढ़ी ब्राह्मणों के अत्याचारों से मुक्त हो जाएगी? मैं कहता हूं, ऐसे कितने भी उपाय निकाल लो। लेकिन इससे आपको कभी भी इस समस्या का स्थायी हल नहीं मिल सकता है। अगर मिलना होता ना? तो कब का मिल गया होता? क्योंकि हमारी समाज में इसप्रकार से शादियां तो बहुत समय से हो रही हैं। इसलिए अब तक तो मिट जाना चाहिए था। मुझे संघर्ष क्यों करना पड़ रहा है? मेरे लिए तो रास्ता बना होना चाहिए था। और मेरी आसानी से शादी होती। लेकिन नहीं बना ना। इसलिए आपके ऐसा करने से समाज में कोई बदलाव नहीं हुआ। इसलिए आज भी ब्राह्मण वाद की समस्या जस की तस है। इसलिए जब तक सामने से बहिष्कार नहीं करोगे तब तक छुटकारा नहीं मिल सकता है। आज नहीं तो कल कभी ना कभी तो करना ही पड़ेगा?

       जो लोग कहते हैं कि ब्राह्मण के गुलाम नहीं है तो फिर आपको ये कहने कि जरूरत नहीं पड़ेगी। कि अब हम किसी के दब्बू नहीं है। हम लोग तो खुद ही समझ जाते। और आप लोग हमें बौद्ध धर्म, पंथ या अन्य रीति रिवाजों से शादी करने की सलाह नहीं देते? गजब है? ये सिर्फ आपकी कायरता की निशानी है। कि आप लोग ब्राह्मणों को ठीक सामने से जबाब ना देने की बजाय या सामने से मुकाबला करने की शक्ति ना होने के कारण ऐसा दूसरा रास्ता अपना रहे हो। अगर आप लोगों ने पहले ही सामने से डंके की चोट पर जबाब दिया होता? और सरे आम बहिष्कार किया होता? तो आज हमें इस समस्या का स्थाई समाधान मिल गया होता। 

      जैसे मैं गुलाम नहीं हूं। और अपनी आने वाली पीढ़ी को स्थाई समाधान देकर स्वाभिमान से जीने की जिंदगी देना चाहता हूं। इसलिए ब्राह्मणों का संपूर्ण बहिष्कार करता हूं, और वो भी डंके की चोट पर। सार्वजनिक रूप से खुले में घर के बाहर सामने से ब्राह्मण समाज का संपूर्ण बहिष्कार। ये पोस्टर 5-6 साल पहले ही लग जाता, लेकिन मेरे घर के सदस्य नहीं मान रहे थे। 

       अब जब भी ब्राह्मण या ऊंच नीच की मानसिकता रखने वाले लोग इस पोस्टर को पढ़ेंगे। तो उनके स्वाभिमान को ठेस जरूर पहुंचेगी। इससे उन्हें एहसास होगा कि उनका वर्चस्व खत्म हो रहा है। उनकी तो रातों की नींदे उड़ जाएंगी। और मेरे हम उम्र वाली ब्राम्हण पीढ़ी को तो बैचेनी हो जाएगी। तब इस वर्तमान ब्राह्मण पीढ़ी को पता चलेगा, कि हमारे पूर्वजों ने इनके साथ कितना गलत व्यवहार किया है? उसी का परिणाम अब उन्हें भुगतना पड़ रहा है। और हमारे पूर्वज जो अभी भी जिंदा हैं, जैसे पर दादा, बब्बा, नाना, पिता आदि। जो अपनी हम उम्र वाले ब्राह्मणों से सर ऊंचा करके स्वाभिमान से जबाब दे सकेंगे। कि तुम लोगों ने हमारा जितना स्वाभिमान गिराया था। अब उतना ही स्वाभिमान तुम्हारा और तुम्हारी आज की पीढ़ी का भी गिरेगा? ये हमारी नई पीढ़ी का शेर है। जो बिना बार किए ही मानसिक रूप से तुम्हारी जैसी सोच रखने वाली समाज की धज्जियां उड़ा रहा है। हमारे ऊपर हुए एक एक अत्याचार का बदला डंके की चोट पर ले रहा है? और छल कपट, छिपकर नहीं, सरे आम सामने से खुलकर। अब आप लोग सुन‌ लो हम इन्हीं के वंशज हैं। हमें गर्व है इस पीढ़ी पर।

         अगर हमारी वर्तमान समाज के लोग ब्राह्मणों द्वारा हुए अपने पूर्वजों का अपमान जानना चाहते हैं ? तो उनसे कभी बैठकर पूंछना या स्यानो की जहां पर चर्चाएं चल रही हो। वहां जाकर सुनना। अक्सर ऐसी बातें होती रहती हैं। आजकल तो ब्राह्मणों के अत्याचार बहुत कम हो गये हैं। लेकिन अभी भी गांवों में देखने को मिल जाते हैं। इसलिए उनकी दहशत के कारण सुनने को मिल ही जाते हैं।

        उन्होंने ऐसी प्रथाएं बना दी हैं कि इनसे हम कभी नहीं निकल सकते हैं। जैसे पूजन पाठ, कर्मकांड में ब्राह्मण जाति को तो बुलाओगे ही, और मंत्रों में ब्राह्मण ब्राह्मण का भी जप करोगे। इसलिए इन सब से हमेशा गुलाम बने रहोगे।



     हमारी समाज के कुछ लोग जो मेरी हम उम्र के हैं। वे जय भीम, जय भीम बोलते हैं और मानते भी हैं। ऐसे ही एक सज्जन हमारे पास के गांव के हैं। दशहरा के दिन वार्तालाप हो रही थी। उन्होंने मेरा रावण दहन का वीडियो देखा। तो उन्होंने रावण दहन, करने को गलत कहा। और आगे वे मुझसे कहते हैं कि हम हिन्दू धर्म में पैदा जरूर हुए हैं, लेकिन हिन्दू धर्म में मरेंगे नहीं। उनका मतलब था कि जब हम पैदा हुए थे तो हमें ज्ञान नहीं था। लेकिन जब हम मरेंगे तब तक हिन्दू धर्म छोड़ चुके होंगे। लेकिन इसके जबाब में मैंने कहा कि शादी के समय तो तुम्हें पूरा ज्ञान हो चुका था कि नहीं? फिर आपने शादी हिन्दू धर्म के अनुसार क्यों की? हिन्दू धर्म से शादी नहीं करते तब मैं जानता? मैं क्या पूरा संसार जान जाता, वो भी तुम्हारे बिना बताए। फिर वे कहने लगे कि जय भीम से शादी हो नहीं सकती थी। फिर मैंने कहा कि फिर उपरोक्त ज्ञान अपने पास ही रखो? तुम जैसे लोग जिस पत्तल में खाते हो उसी में छेद करते हो। मैं भी बाबा साहब को मानता हूं। लेकिन इनके जैसे दोगला व्यवहार नहीं करता। जो कहते हैं कि हम हिन्दू धर्म को ही नहीं मानते, और सभी निजी कार्य हिन्दू धर्म के अनुसार करते हैं। ऐसे इंसान किसी भी समाज को अंदर से खोखला करते हैं।

      जय भीम मानते हो और छोटी जाति के लोगों की रैलियां निकालते हो, लेकिन असल जिंदगी में इनको बराबरी का हक दे रहे हो कि नहीं। तो उन्होंने कहा हां। फिर मैंने पूंछा कि अपनी शादी में सभी ऊंची नीची जातियों को बराबरी से एक साथ बैठाल कर खाना खिलाया था? तो उन्होंने कहा पूरे सम्मान के साथ खिलाया था। लेकिन जैसे अपने यहां भेदभाव चल रहा है उसी प्रकार से खिलाया था मतलब अलग अलग बैठालकर। मैंने कहा जब तुम खुद ये बात अपने आप पर लागू नहीं कर रहे हो? और दुनिया को इसका उपदेश दे रहे हो। तो कौन सुनेगा तुम्हारी बात। सब लोग तुमको ही मेरी तरह दोगला कहेगा।

काश, ये जातिवाद ना होता!

तो एक भाई को अपनी बहन की शादी से दूर रहना नहीं पड़ता।

2)काश, मेरी शादी के कारण मेरे परिवार को रोना नहीं पड़ता। जातिवाद ने बहुत सारी खुशियां छीनी हैं।

         आज मैं जातिवाद संघर्ष में तो जीत गया हूं, क्योंकि परिवार को सुधार लिया है। लेकिन मेरा परिवार रो रहा है। क्योंकि उनकी खुशियां जातिवाद के कारण ही छिनी हुई हैं। रास्ता बन गया है, तो लोगों चलना स्वाभाविक है। लेकिन मैंने जो दुःख, मां बाप की आंखों में आंसू, ताने, संघर्ष किया है। वो मैं ही जानता हूं। इसलिए मेरा बस चले तो मैं अपने बनाए रास्ते पर किसी को चलने नहीं दूं।

        लेकिन अभी तक मैं और मेरा परिवार रोया है। ताकि आने वाली पीढ़ी के किसी परिवार को जातिवाद के कारण रोना ना पड़े।


मैंने कार धुलने का काम किया है। और भी बहुत प्रकार के काम किये हैं। लेकिन कार धुलने का काम मुझे बहुत अच्छा लगता है। आखिर मेरे लिए कोई भी काम, पैसे कमाने के लिए ही तो करना है। इसलिए जिसमें मेरा मन लगेगा, मैं वो काम करता हूं। और ये बहुत जरूरी भी है।

     और हां, मुझे अपने कार धुलने के काम पर थोड़ी भी शर्म नहीं आती।  क्योंकि मैं अपने काम को पसंद करता हूं।

जो लोग कामों की सीमाएं तय करके बैठे हैं कि ये काम बहुत अच्छा है, ये काम बड़ा है। और ये काम खराब, छोटा, तुच्छ है आदि प्रकार की बातें करते हैं। वे लोग भई अपनी सीमाओं में रहकर काम करें। मैं इन सीमाओं में कैद नहीं हूं। इन सब बातों से मुझे कोई फर्क ही नहीं पड़ता। पिछले 10 सालों से कार धुलने का काम कर रहा हूं। लोग कहते हैं कि पढ़े लिखे हो और ये काम करते हो। तो क्या पढ़ें लिखे लोग ये काम नहीं कर सकते हैं? इसलिए ये सीमाएं आपके लिए हो सकती हैं। लेकिन मेरे लिए नहीं।

मैंने जितना भी सीखा है, अपने घर परिवार से ही सीखा है। मेरी मां कहती थी कि पढ़ेंगा लिखेगा नहीं। तो नाली साफ करना पड़ेगा। तसला डालना पड़ेगा। यही बात मेरे मन में बैठ गई। पढ़ लिख तो लिया, उसी के मुताबिक काम भी कर लिया। और जहां भी किया उन्होंने निवेदन किया कि काम छोड़ कर मत जाओ। क्योंकि काम पसंद आता था। इससे पहले कार धुलने का काम पढ़ाई-लिखाई करने के बाद किया। क्योंकि बिना पढ़े लिखे लोगों का काम भी किया था। सोच मिटानी थी कि पढ़ लिखकर जरूरी नहीं कि लोगों के पसंद के काम करो।

कुछ लोग करते हैं, लेकिन छुपाते हैं। क्योंकि उनके मन में डर है कि लोग क्या कहेंगे। लेकिन मैं अपने कार धुलने के काम को नहीं छुपाता। खुलकर सामने कहता हूं कि ये काम करता हूं। और मुझे पसंद है इसलिए करता हूं। 


मेरी पसंद भी अलग है जैसे लोगों की IPL की टीमें खिलाड़ियों को देखकर पसंद होती है। लेकिन मुझे कलकत्ता शहर पसंद है इसलिए KKR  मेरी हमेशा के लिए पसंदीदा टीम है। जब तक मध्य प्रदेश की टीम नहीं बन जाती।


                लोगों का अनुभव कहता हैं कि झूठ पर रिश्ते टिकते नहीं हैं। और मेरा अनुभव कहता है कि आजकल सच बोलने से रिश्ते बनते ही नहीं हैं।

सरकारी नौकरी करने वाले व्यक्ति सिर्फ अपनी 1-2 पीढ़ी का ही भविष्य अच्छा कर सकते हैं।

लेकिन हम जैसे लोग पूरी समाज की आने वाली अनगिनत पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित करते हैं। इसमें सरकारी नौकरी करने वालों की पीढ़ी भी शामिल है।

     जैसे अपने पूर्वज, महात्मा ज्योतिबा फुले ने उस समय संघर्ष नहीं किया होता। तो आज हम लोग पढ़ाई लिखाई ही नहीं कर पाते। सरकारी नौकरी क्या खाक करते? उन्हें भी, उन्हीं लोगों ने रोका होगा, जिस समाज के लिए वे लड़ रहे थे। कि आप क्यों पंगा लेते है? अपना परिवार भर देखिए। लेकिन उन्होंने पूरे समाज के लिए लड़ाई लड़ी। और आज हम उन्हीं की वजह से पढ़ लिख पाए हैं।

          अगर आपसे कोई गाड़ी चलाते नहीं बनती है। और कोई कहे कि ये लो गाड़ी और बिल्कुल अच्छे से चला कर दिखाओ। तो क्या आप चला पाएंगे?? नहीं चला पाएंगे।

  इसी प्रकार से जब अपने समाज के लोग पूजन पाठ, कर्मकांड आदि करते ही नहीं है। और अपने ही समाज के लोग उनसे पहली बार में ही ये उम्मीद लगाकर बैठ जाएं कि पूजन पाठ कर्मकांड बिल्कुल सही ढंग से हो। तो क्या ये संभव है?? नहीं है। लेकिन मेरे परिवार के ऐसा ही सोच रहे हैं। इसलिए ये तो संभव नहीं है। 

  मैं अपनी और अन्य समाज, (ब्राह्मण समाज को छोड़कर) गाड़ी रूपी मंच दे रहा हूं कि आप हमारे घर के कार्यक्रमों में आइए और पूजन पाठ और कर्मकांड आदि की बेझिजक तैयारी कीजिए। अब सवाल ये है कि अपनी समाज के लोग कर्मकांड सीखें ही क्यों? और सीखकर करेंगे भी क्या? जब अपने ही समाज के लोगों को इनसे पूजन पाठ कर्मकांड आदि करवाना ही नहीं है।


भगवान गौतम बुद्ध (आज से 2588 साल पहले) तब मुस्लिम धर्म नहीं था।

इसके बाद 14 वीं सदी के संतों ने धर्म, जाति, पाखंड, कर्मकांड, अंधविश्वास को दूर करने के लिए समाज में चेतना जगाने का काम किया। इंसानियत का पाठ पढ़ाया।

संत कबीर दास (1398)

संत शिरोमणि रविदास चमार (1377) मीराबाई के गुरु।

गुरुनानक साहेब (1469) जो खत्री ब्राह्मण थे। हिन्दू धर्म की जाति, वर्ण, पाखंड जैसी कुरुतियों से विचलित होकर सिख धर्म बना।


इनके प्रयासों से समाज में बहुत सुधार हुआ। ब्राह्मणों और मौलवियों का वर्चस्व कम हुआ।


इसके बाद आते हैं तुलसीदास (1511) जो ब्राह्मण थे। फिर इन्होंने रची रामचरितमानस और उसमें ब्राह्मणों का जो वर्चस्व कम हुआ था उसे वापस उठाने के लिए ब्राम्हणों का महिमा मंडन लिखा और फैलाया।

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