जहां देखो लोग दहेज प्रथा समाप्त करने के लिए सैंकड़ों अभियान चलाते हैं। लेकिन चढ़ाव (जेवर) प्रथा के लिए आपने कभी कुछ देखा? कहीं नहीं देखा होगा? लोगों को तो पता भी नहीं है कि ये एक समस्या है?

   मेरे अनुसार दहेज और चढ़ाव प्रथा दोनों एक है, और गलत है।

लड़कों के द्वारा दहेज लेने पर, लड़की पक्ष पर बोझ, परेशानी, कर्ज आदि बढ़ता है। ठीक वैसे ही चढ़ाव, गहना गुरिया, जेवर, चढ़ाने पर लड़के पक्ष पर भी परेशानी, कर्ज बढ़ता है (भले ही बाद में जेवर लड़के पक्ष के रहते हैं)। लेकिन उस समय जेवर बनवाने के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं, तो वर पक्ष क्या करेगा? ठीक वैसे ही दहेज देने के लिए वधू पक्ष के पास पैसे नहीं हैं, तो वे क्या करेंगें? इसलिए दोनों के जबाब एक ही हैं, "कर्ज लेंगे"। जब लड़के दहेज के लिए आवाज उठा रहे हैं, तो लड़कियों को भी चढ़ाव प्रथा के खिलाफ कुछ करना चाहिए, कि नहीं? इसलिए जिन लड़कियों को चढ़ाव प्रथा गलत नहीं लगती? उन्हें दहेज प्रथा को गलत कहने का कोई हक नहीं है। मेरे अनुसार तो दोनों प्रथाएं गलत हैं। जब कुछ लड़के, ये सोच कर के दहेज नहीं लेते कि लड़की के परिवार पर कर्ज का बोझ ना हो। ठीक इसी प्रकार से लड़कियों को भी तो समझना चाहिए कि लड़के के परिवार पर भी कर्ज ना बढ़े। भई शादी किसी एक को तो करनी नहीं है, शादी तो दोनों को करनी होती है ना। प्रश्न है जब लड़के दहेज का त्याग कर सकते हैं! तो लड़कियां चढ़ाव का क्यों नहीं कर सकती?