मेरी औकात, हैसियत ही नहीं है धन, दौलत, संपत्ति से संपन्न घर में रिश्ता करने की। लेकिन मुझे उनकी संपत्ति का लालच नहीं है क्योंकि दहेज से मुझे कोई मतलब नहीं है? तो फिर मैं धन दौलत से गरीब लड़की लेकिन सोच विचार से अमीर लड़की से शादी करूंगा ना।
क्योंकि लोगों की भलाई करने में मुझे बहुत खुशी मिलती है। इसलिए जिन चीजों से मुझे खुशी मिलती है। मैं उन्हें कभी नहीं छोड़ सकता।
मैं धन दौलत से गरीब हूं, लेकिन सोच, विचार, समाज सेवा आदि से बहुत अमीर हूं। मुझमें लाख बुराइयां हैं। लेकिन एक ही अच्छी बात है कि मैं लोगों की भलाई के लिए समाज से लड़ सकता हूं। गलत को गलत मुंह पर कह सकता हूं।
मैंने कई लोगों, रिश्तेदारों, यहां तक कि अपने मां-बाप को कहते हुए भी सुना है कि फलाने/डिकाने की औलाद (लड़का या लड़की) भाग गई। फिर भी उसके बाप मतारी उसे बुलाने, चलाने लगे। उसके घर आने जाने लगे। हमारी लड़की/लड़का ऐसा करता तो हम उसे कभी भी नहीं बुलाते ना ही उसके घर जाते। हमारी औलाद हमारे लिए उसी दिन से मर गई थी जिस दिन उसने ऐसा किया था।
तो मैंने अपने मां बाप को असलियत (प्रेक्टिकली) में, अगर सच में आपकी औलाद दूसरी जाति में शादी करता/करती है। तो क्या आप हमेशा के लिए उससे रिश्ता तोड़ सकते हैं? मैंने उनसे कहा यह मेरी गारंटी है कि आप नहीं त्याग/छोड़/तोड़ सकते हो। मैं तो नहीं छोड़ सकता, अगर मेरा लड़का/लड़की किसी भी जाति में शादी करे। मैं तो और धूमधाम से शादी करूंगा। क्योंकि उनकी खुशी में ही हमारी खुशी है। हमारी पूरी दुनिया तो हमारी औलाद ही है ना।
आप सोचेंगे कि तुम तो ऐसी ही सोच रखते हो। तो मैं कहता हूं कि आप दुनिया, समाज, लोग, इज्जत को लेकर अपना फैसला सुनाते हैं। नहीं तो आप भी अपनी औलाद का साथ जरूर देना चाहेंगे। क्योंकि आपको उनकी सबसे ज्यादा चिंता होती है। दुनिया में औलाद के लिए मां बाप से ज्यादा भला कोई नहीं चाहता।
आप कुछ समय बाद ही सही, लोगों, समाज, रिश्तेदारों से छुपकर अपना ही लोगे, और लोग अपनाते ही हैं। तो उसी समय क्यों नहीं अपना लेते? ऐसे में उस समय आप भी चिंता में और औलाद भी चिंता में। जबकि ऐसे समय उसे आपकी सख्त जरूरत होती है। लेकिन आप दुनिया की वजह से अपनी ही दुनिया का साथ नहीं देते।
यह तो सब लोग गुस्से में कहते हैं, क्योंकि वे अपने मन की सुनने की वजाय। लोग क्या कहेंगे के बारे सोचने लगते हैं। समाज, रिश्तेदारों में क्या इज्जत रहेगी आदि। सोचकर उस दिन गुस्से में बोल देते हैं। लेकिन 2-3 साल समय बीतने के बाद जब लोग भी भुल जाते हैं। तो हर मां बाप अपनी औलाद को अपना लेता है। आप ही तो कहते हैं कि अगर औलाद जांघ में हग दे तो जांघ थोड़ी काट कर फेंक देते हैं।
इसी समाज की बहुत गंदी सोच, पाबंदियां है। कि लड़की दूसरी जाति में शादी कर ले। या लड़की के शादी से पहले प्रेम प्रसंग रहें हैं। उसको तो समाज, लोग, दुनिया बहुत बदनाम करती है। और अगर किसी लड़के के ऐसे ही शादी से पहले प्रेम प्रसंग रहते हैं तो यही समाज, लोग, दुनिया को इस सबसे कोई मतलब नहीं होता है। लड़को के मामले में समाज हर गलत बात पचा लेता है। लेकिन लड़कियों के मामले में लोगों से ऐसी ही बातें हजम नहीं होती। तो यह कैसी सोच है? भेदभाव, दोगली सोच ही है। नहीं तो जो गलत है सो है। उसमें लिंग (लड़का/लड़की) क्या देखना। दोनों के साथ एक सा व्यवहार करें ना। लड़की दूसरी जाति में शादी कर ले, ऐसा मत पहनो, ऐसे मत घूमो, तुम बाहर रह कर पढ़ाई लिखाई, काम आदि नहीं कर सकती हो। अगर किसी लड़की ने ऐसा कर लिया तो फिर समाज उसके और परिवार के खिलाफ बहुत बातें करता है। यहां तक कि औरतें भी औरतों की इज्जत नहीं करती। कम से कम औरतों को तो औरतों की इज्जत करनी चाहिए। तभी पुरुष प्रधान समाज में औरतों पर जुर्म होते हैं। लेकिन वहीं अगर कोई लड़का दूसरी जाति में शादी करता है, उन्हें हर प्रकार की स्वतंत्रता दी जाती है। कुछ भी ग़लत काम करता है तो और लौट कर बढ़ावा दिया जाता है। कहते हैं लड़का ही तो है लड़कों का सब चल जाता है लेकिन लड़कियों का नहीं चल सकता। तो यह समाज की कैसी दोगली सोच है? इसप्रकार की विचारधारा के खिलाफ मैं हमेशा रहूंगा।
मेरी जिससे भी शादी होगी उसे अपनी बहन की तरह ही स्वतंत्रता दूंगा। मैं अपनी बहन को भी अपने जैसी ही स्वतंत्रता देता हूं। यहां तक कि मैं, बेटा बेटी एक समान मानता हूं। तो मां बाप का हिस्सा, जमीन, जायदाद अकेले लड़का ही क्यों ले? लड़की का भी उतना ही हक है जितना लड़कों का? वह बिल्कुल हमारे घर में वैसे ही रह सकती है जैसे अपने घर में रहती थी। जैसे कपड़े पहनना चाहे पहन सकती है। मेरी तरफ से हर प्रकार की स्वतंत्रता रहेगी जो भी समाज ने लड़कियों के लिए पाबंदियां बना रखी हैं।
लोग क्या कहेंगे उन सब से मुझे कोई लेना देना नहीं है। मैं उनसे लड़ लूंगा। मुझे सिर्फ तुमसे मतलब है कि तुम क्या चाहती हो? लोगों से थोड़ी मतलब है। इसलिए मेरे लिए सबसे जरूरी है कि तुम क्या चाहती हो?
एक बात हमेशा ध्यान रखना कि जब आप किसी के हक के लिए लड़ोगे तो बहुत सारे दुश्मन बनेंगे। इसलिए मेरे बहुत से लोग, रिश्तेदार यहां तक कि मेरे अपने मां-बाप भी दुश्मन बन गये हैं। क्योंकि मैं सबके हक की लड़ाई लड़ता हूं, जो गलत है तो सामने ही बोल देता हूं। अगर सब लोग गलत रास्ते में चल रहे हैं तो चलते रहें। लेकिन मैं हमेशा अच्छे रास्ते पर चलूंगा भले ही मैं उस रास्ते में अकेला ही रहूं।
मैं भूत प्रेत, आत्मा, अंधविश्वास, पाखंड, ढोंग आदि में विश्वास नहीं रखता।
मुझे कपड़े, शारीरिक शौक आदि का शौक नहीं है।
शौक है तो हमेशा अच्छा इंसान, समाज, मनाव सभ्यता की सेवा और देश हित में काम करने का।
बहुत सादगी साधारण तरीके से रहता हूं।
आपको समाज की सेवा करना है करें नहीं करना ना करें। यह तो स्वाभाविक, अन्तर्मन से आता है किसी के कहने पर थोड़ी।
आप अपनी जगह बिल्कुल सही हैं, जब आप वैसा ही करते हैं जैसे में आपको खुशी मिलती है।
मुझसे तो मेरे मां बाप घर परिवार वाले भी बहुत टेंशन में रहते हैं? क्योंकि मेरी इस प्रकार की अलग सोच है। इसलिए मै नहीं चाहता कि आप भी दुखी हो। वे तो मेरे घर के हैं मैं उनको किसी तरह समझा लूंगा या वे जो भी कहेंगे सह लेंगे। मेरे अपने मां-बाप हैं। मुझे उनकी बातें बुरी नहीं लगती।
इसलिए आप मेरी बातों को एक बुरे सपने की तरह भुला दीजिएगा।
तुम क्या हो, कैसे हो ये फिजूल की बाते है तुम जो हो, जैसे हो वैसे ही मुझे पसंद हो। मै ऐसी सोच रखता हू तो आप भी मुझे मै जैसा हू वैसा ही स्वीकार करे
मेरी जंग आडंबरों, ढोंग, पाखंड, ऊंच-नीच, जातिवाद, दहेज, सामाजिक रीति रिवाज, अंधविश्वास, भूत प्रेत, सामाजिक कुरीतियों, गलत विचारधारा आदि के खिलाफ है।
अब बात शादी सम्मेलन आदि से करने की तो मुझे बिल्कुल पता नहीं कि सम्मेलन में कैसे शादी होती है? ना ही मैं सत साहेब आदि किसी प्रकार के पाखंड को मानता हूं। ऐसी मेरी अपनी सोच है। जिसका पूरा दोषी मैं ही हूं।
कुछ बातें मुझे बहुत बुरी लगती हैं। जब लोग मेरी चढ़ावा, जेवर चढ़ाने वाली बात नहीं समझ सकते। जिसका मुझे दुःख होता है।
जब कहते हैं कि तुम्हें दहेज नहीं लेना है इसलिए चढ़ावा भी नहीं चढ़ाना है।
जबकि इसका ऐसा मतलब नहीं है। जब हम लड़की पक्ष के मां-बाप को अपने मां बाप की तरह समझ कर उन्हें तनाव मुक्त, कर्ज मुक्त, मनमर्जी तक के लिए स्वतंत्र, कर रहे हैं। तो आप भी लड़के पक्ष के मां-बाप को भी अपना समझ कर मनमर्जी के लिए स्वतंत्र कर दीजिए।
क्योंकि मुझे अपना घर परिवार दिखता है। हम कितने सक्षम है? कितना खर्च उठा सकते हैं? मेरे लिए यह बहुत मायने रखता है।
ना कि दिखावटी, फिजूलखर्ची, हुब्बी में मरना, लोगों के अनुसार शादी में ऐसा वैसा होना ही चाहिए आदि से कोई मतलब नहीं है।
क्योंकि इसके बाद हम पर जो भी कर्जा होगा वो हम ही चुकाएंगे। क्या, कुछ बोलने, कहने वाले लोग, रिश्तेदार नहीं आएंगे चुकाने? इसलिए हम अपनी औकात, हैसियत अनुसार ही शादी करेंगे।
मैं एक दिन की खुशी के लिए सालों साल तक रुपयों के कर्जे की टेंशन में नहीं डूबना चाहता। मैं सूखी नमक रोटी खा कर खुश रह सकता हूं और बिल्कुल रहता हूं। लेकिन एक रुपए का भी कर्ज होने पर मुझे बहुत ज्यादा टेंशन होती है। रातों की नींद उड़ जाती है। इसका दर्द मैं बयां नहीं कर सकता, वही जान सकता है जिसने यह महसूस किया है।
मैंने दहेज प्रथा को खत्म करने का दृढ़ संकल्प लिया है और इसी जिद में खड़ा रहूंगा। यह सामाजिक कुरीति है जिसे मैं अपने आप से जरूर दूर करूंगा। मुझे समाज सेवा करना है क्योंकि मुझे यह सब करके खुशी मिलती है। तो सबसे पहले मैं अपने आप को बदल कर समाज सेवा करूंगा। क्योंकि अपने आप को बदलने से बढ़कर कोई समाज सेवा नहीं होती है। मुझे दुनिया से कोई मतलब नहीं है कि दुनिया वाले क्या कहेंगे। उन्हें जो कहना है कहते रहें उनका काम है कहना।
क्योंकि आगे कभी समाज से दहेज के खिलाफ लड़ाई लड़ना हुई तो कैसे लड़ सकूंगा। सब बोलेंगे कि खुद अपनी शादी में तो दहेज लिया है। और हमें दहेज ना लेना लेने की सलाह दे रहे हो। ऐसा ज्ञान अपने पास ही रखो।
सही भी बात है ये तो वैसा ही हुआ कि खुद दारू पीते हो और दूसरों को उसे ना पीने की सलाह दे रहे हो। ऐसे में आपकी कौन बात मानेगा। वो तो उल्टा यही कहेगा कि सबसे पहले खुद तो दारू पीना छोड़ दो इसके बाद हमें छोड़ने के लिए ज्ञान देना।
जब मैं, दहेज प्रथा के लिए समाज, लोग, दुनिया से लड़की के लिए लड़ सकता हूं। तो लड़के के लिए भी लड़ सकता हूं चढ़ाव, जेवर आदि के लिए। जब हम लड़की पक्ष को पूरी तरह स्वतंत्र कर रहे हैं कर्ज, तनाव मुक्त आदि से तो उसी प्रकार लड़की पक्ष को भी लड़के पक्ष को चढ़ाव, जेवर आदि की मांग से मुक्त कर देना चाहिए। किसी प्रकार का कोई लेना देना नहीं दोनों पक्षों की तरफ से। इसके बिना भी शादी हो सकती है। जिसे करना हो करेगा नहीं करना नहीं करेगा।
मेरे अनुसार शादी में दोनों पक्षों के खास खास 50-50 रिश्तेदारों के बीच हो तो ज्यादा अच्छा। बाकी सब को एक दिन दावत पर बुलाकर उनका खाना पीना, स्वागत सत्कार आदि बहुत अच्छे से करें। क्योंकि उस दिन खाना पीना स्वागत के अलावा कोई काम नहीं रहेगा जिसके कारण घर वालों, रिश्तेदारों को थकान भी नहीं होगी। मेरी ख्वाहिश है कि शादी कोर्ट से हो। और आशीर्वाद/रिसेप्शन/दावत/पार्टी आदि बाद में दे दें। क्योंकि शादी में सभी को दावत के लिए ही तो बुलाते हैं। उन्हें आपकी शादी से मतलब नहीं होता। आपसे मिलकर, खाना खाकर और व्यवहार/गिफ्ट देकर चले जाते हैं। हम भी ऐसा ही करते हैं। आपकी शादी से मतलब उन्हीं सगे संबंधियों को होता है जो ज्यादा से ज्यादा 50 ही होते हैं।
मेरी सोच को सब लोग अच्छा कहते हैं। लेकिन कोई आगे आकर समाज से लड़ना नहीं चाहता? और कहते हैं तेरे बस बदलने से क्या से होगा पूरी दुनिया थोड़ी बदल जाएगी। तो मैं कहता हूं कि मैंने दुनिया बदलने का ठेका थोड़ी लिया है मुझे तो सिर्फ अपने आप को बदलना है। दुनिया से क्या मतलब है।
लोग कोई मेरा साथ दे या ना दें। लेकिन वे अपने मन की जरूर सुने। यह नहीं कि लोग क्या कहेंगे, रिश्तेदार क्या कहेंगे, हमारी नाक कट जाएगी आदि सोचकर अपना फैसला लेते हैं। तो ऐसे में मेरी बात नहीं बनती और बहुत गुस्सा आता है। कि कम से कम अपने आप की तो सुनो। लोगों के हिसाब से क्यों चलते हो।
आप सौ लोगों से पूछेंगे तो सौ प्रकार के जवाब मिलेंगे। तो आप किनके- किनके मन का कर पाएंगे इसलिए अपने मन का कीजिए तो ज्यादा अच्छा हो। जो लोग समाज, लोग, दुनिया क्या कहेगी आदि के बारे में सोचते हैं उन से मुझे बहुत गुस्सा आती है।
मैं बहुत जिद्दी हूं क्योंकि जब मैं आपके मुंह से ही सुन लेता हूं कि तुम सही सोचते हो तुम्हारी सोच सही है। तो फिर मैं उस सही बात को मिटाने के लिए अपनी जिद पर अड़ जाता हूं। ऐसे में मैं बहुत जिद्दी हूं। फिर मैं अपनी मां की भी नहीं सुनता। और अपनी सोच पर अड़ा रहता हूं। चाहे उसके लिए मुझे अपने घर वालों से ही क्यों ना लड़ना पड़ जाए। और इन सब के लिए ही लड़ रहा हूं जिससे कारण ही ये हालात हैं।
अभी मैं होली में अपने घर 10 महीने बाद तो सिर्फ दो रात के लिए गया था। और दोनों रात में मेरी मां ने और मैंने दोनों ने खाना नहीं खाया। क्योंकि मैं उनके अनुसार शादी नहीं कर रहा हूं। और मैंने अपनी जिद की वजह से नहीं खाया। और टेंशन सभी को क्योंकि सबको एक दूसरे की परवाह है। मुझे अच्छा थोड़ी लगता उनको दुःखी देखकर उन्हें भी अच्छा नहीं लगता मुझे चिंता में देखकर। और मैं कहता हूं जब मेरी खुशी में ही आपकी खुशी है तो मेरे अनुसार करो ना, वरना शादी की टेंशन ना लो। शादी होना ही सबकुछ थोड़ी है जिंदगी में।
इसलिए मैं कहता हूं कि मेरी शादी हो या ना हो। लेकिन होगी तो अपनी शर्तों के अनुसार ही होगी। वरना मरना पसंद है लेकिन (दहेज प्रथा, पंडित के द्वारा पूजा पाठ, मुहूर्त, ऊंच नीच, जातिपात, भेदभाव) इन मुख्य शर्तों के बिना कभी नहीं कर सकता।
मैं जात पात, धर्म, ऊंच नीच, भेदभाव आदि नहीं मानता हूं। मैं सभी जाति के लोगों को एक समान मानता हूं। इसलिए हमारे घर के किसी भी कार्यक्रम खाना पीना, दावत आदि में पंडित, ठाकुर, कुशवाहा, प्रजापति, चौधरी, बंशकार आदि सभी जातियों के लोग एक साथ मिलकर खाना खाएंगे किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं रहेगा। हमने तो अपने आप को बदलने का प्रण कर लिया। लेकिन आप जातिवाद, ऊंच-नीच मानते हैं तो हमसे आपकी बात कैसे बन सकती है?
लेकिन मैं अपने कार्यक्रम अपने अनुसार ही करूंगा चाहे जो हो जाए। मैं अपने घरवालों को समझाता हूं लेकिन नहीं समझते तो क्या करें? शादी तो मुझे करना है। लेकिन जब तक मेरे अनुसार नहीं होगी तो आप कैसे जबरदस्ती कर सकते हो? क्योंकि उन्हें थोड़ी करना है शादी? शादी तभी होगी जब मेरे मां-बाप भी मेरी शर्तों के अनुसार शादी करेंगें।
मैं अपनी शादी में पूजा पाठ का कार्य पंडितों से क्यों नहीं कराना चाहता हूं? पंडित की जगह मान- भनेज या समाज के बुद्धिमान से क्यों कराना चाहता हूं? क्योंकि पंडित हमें अपने से नीच, जातिपात का भेदभाव करते हैं।
जब हम पंडितों के घर खाना खाते हैं तो अलग बैठकर खाते हैं और अपनी थाली खुद धोना पड़ता है। इसी प्रकार हमारे समाज के लोग भी चौधरी, बंसकार को ऐसे ही छोटा समझते हैं।
लेकिन मैं ना ही पंडित के घर पर अपनी थाली धोता हूं चाहे खाना नहीं खाऊंगा। और ना ही अपने घर में किसी चौधरी बंशकार से थाली धुलवाता हूं। सबको बराबरी का दर्जा देता हूं। मैं ना ही किसी के सामने झुकता हूं और ना ही किसी को अपने सामने झुकाता हूं। मेरे लिए सब इंसान एक समान है। जिसको मेरी सोच को मानना है तो मानो। नहीं मानना है ना मानो।
लेकिन मैं किसी से कुछ भी नहीं छिपाता। सबके सामने जैसा हूं वैसा ही पेश आता हूं कोई दिखावटी, बनावटी नहीं।
मैं भगवान को दिखावटी नहीं मानता। लेकिन मेरी पूरी दुनिया मेरी मां (माता) है। मां से बढ़कर मेरे लिए कोई नहीं है।
मैं पिछड़ा वर्ग में आता हूं।हमारा समाज, लोग यहां तक कि मेरे मां बाप कहते हैं कि दूसरी जाति जैसे पंडित, ठाकुर, लोधी (सामान्य और पिछड़ा वर्ग) में शादी करता है तो हमें स्वीकार है। लेकिन अगर हरिजन, आदिवासी (चौधरी, बंसकार, गौड़) से की तो तू, हमारे लिए हमेशा के लिए मर गया। अबसे हमारा तुम्हारा रिश्ता ख़तम। अब बताओ ये कैसी सोच है? जाति भेदभाव, ऊंच नीच वाली विचारधारा के कारण ही ऐसा कहा जाता है।
मैं मुहूर्त आदि में भी विश्वास नहीं रखता। और मुझे अपने हर कार्यक्रम बिना मुहूर्त के ही करना है। तो शादी भी बिना मुहूर्त के ही करूंगा ना! क्योंकि जब हम बिना मुहूर्त के पैदा हुए और बिना मुहूर्त के ही मरेंगे। तो फिर शादी विवाह आदि के कार्यक्रम मुहूर्त के अनुसार क्यों करें?
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