पहलगाम में हुए आतंकी हमले में निर्दोष लोगों का नरसंहार घोर निंदनीय है, ये कायरता की निशानी है। भगवान उनके परिवार को हिम्मत दे। ये आतंकवादी मुसलमान थे। लेकिन आतंक फैलाने वालों का कोई धर्म नहीं होता।
आतंकवादियों के जुर्म, नरसंहार, क्रूरता सब इतिहास में लिखते जा रहें हैं। और इतिहास किसी को माफ नहीं करता। इसलिए आतंकियों की आने वाली पीढ़ी ही अपने पूर्वजों द्वारा किए गए अत्याचारों पर शर्म करेगी। इतिहास का ये घिनौना सच उनसे पच नहीं पाएगा। (जैसे ब्राह्मणवाद आज का उदाहरण है)
इतिहास गवाह है कि नफरत फ़ैलाने वाले अपनो का भी भला नहीं सोचते। इसलिए धर्म को जोड़कर मत देखिए। नफरत फ़ैलाने वालों का मकसद कुछ और ही होता है। इसलिए हिन्दू मुस्लिम में मत बटिए। यही तो वे चाहते हैं कि ये आपस में लड़ें और देश कमजोर हो। और इसी कमजोरी का उन्हें फायदा हो। और मरने वालों में 1 मुसलमान भी था, जो दूसरों को बचाने में मारा गया। इसलिए विवेक लगाइए।
मैं धर्म निरपेक्ष हूं। जो गलत है उसका विरोध डंके की चोट पर करता हूं। इंडोनेशिया में संसार के सबसे अधिक मुसलमान रहते हैं। लेकिन मैंने नहीं सुना कि आतंकवाद के तार इंडोनेशिया से जुड़े मिलते हैं। वहां भी हिन्दू अल्पसंख्यक रहते हैं। लेकिन जुर्म नहीं होते। क्योंकि वहां भी भारत के जैसे संविधान है। धर्मनिरपेक्षता है।
आतंकवाद को सिर्फ पाकिस्तान शरण देता है। क्योंकि देश चलाने वाले अशांति फैलाना चाहते हैं। किसी भी देश में आतंकवाद पनप नहीं सकता जब तक कि उस देश को चलाने वाली सत्ता की सहमति ना हो। इसमें आम जनता का कोई लेना-देना नहीं होता। लेकिन नुकसान आम जनता को ही झेलना पड़ता है। इसलिए ये उस देश की सोच पर निर्भर करता है कि उसे शांति फैलाना है या नफरत। वहां रहने वाले आम इंसानों को बीच में नहीं घसीटना चाहिए। अगर कुरान, शरियत में नफरत फ़ैलाना लिखा होता, तो उनकी कौम में भी क्रांति होती और होती भी है। और वे ही लोग जलाते भी। उनमें भी बहुत कुप्रथाएं है, जिसके लिए लोग क्रांति करते हैं। जुर्म के खिलाफ सभी आवाज उठाते हैं। भारतीय नारी शिक्षा के लिए सावित्रीबाई फुले के साथ फातिमा शेख ने भी योगदान दिया था। किसी परिवार का सदस्य जब घिनौना नरसंहार करता है तो उसके परिवार के लोग ही त्याग देते हैं। धर्म तो दूर की बात है।
जरा सोचिए, आतंकवादी अगर हिन्दू होते और हनुमान चालीसा पढ़ने बोलते। तो हिन्दू धर्म बदनाम होता। क्या आप इस बात पर गर्व करते। कभी नहीं करते।
जो जुर्म करते हैं, फिर चाहे कमजोरों, निहत्थों या दलितों पर ही क्यों ना हो। मेरा ऐसा सनातन धर्म नहीं है। निर्णय आप पर कि जुर्म करने वाले किस धर्म के होते हैं।
0 Comments